Reliance share price: अनिल अंबानी को खुशखबरी मिलने के महज 24 घंटे बाद रिलायंस पावर पर तीन साल का बैन लगा दिया गया है। जानें, इस फैसले का अनिल अंबानी और उनकी कंपनी पर क्या असर पड़ेगा।
हाल ही में अनिल अंबानी के लिए एक राहत की खबर आई थी, जब उनकी कंपनी रिलायंस पावर को एक महत्वपूर्ण कानूनी मामले में जीत मिली थी। लेकिन इस खुशी के महज 24 घंटे बाद उन्हें एक और बड़ा झटका लगा है। भारतीय विनियामक संस्थाओं ने रिलायंस पावर पर तीन साल का बैन लगा दिया है, जिससे कंपनी की भविष्य की योजनाओं और उनके लिए काम करने वाले कर्मचारियों पर भी असर पड़ सकता है।
बैन का कारण
रिलायंस पावर पर यह बैन भारतीय ऊर्जा क्षेत्र के नियमों और विनियमों का उल्लंघन करने के कारण लगाया गया है। सूत्रों के मुताबिक, कंपनी ने कुछ कानूनी और पर्यावरणीय मानकों का पालन नहीं किया, जिसके कारण यह कड़ी कार्रवाई की गई। यह बैन विशेष रूप से कंपनी की नवीकरणीय ऊर्जा परियोजनाओं और कुछ अन्य महत्वपूर्ण योजनाओं पर लागू होगा।
कंपनी के लिए यह एक बड़ी चुनौती है, क्योंकि यह बैन उन्हें कुछ प्रमुख परियोजनाओं के लिए वित्तीय और लाइसेंसिंग संबंधी समस्याओं का सामना करवा सकता है। साथ ही, रिलायंस पावर की भविष्यवाणी की गई विकास दर और लाभ पर भी इसका नकारात्मक असर पड़ सकता है।
जांच में बैंक गारंटी फर्जी पायी गई
सोलर एनर्जी कॉरपोरेशन ऑफ इंडिया लिमिटेड (सेकी) ने एक नोट में कहा, ‘महाराष्ट्र एनर्जी जेनरेशन, जिसे रिलायंस एनयू बीईएसएस (एक परियोजना के लिए) के रूप में जाना जाता है. कंपनी की तरफ से पेश डॉक्यूमेंट की जांच में यह पाया गया कि निविदा शर्तों के अनुरूप बोलीदाता की तरफ से प्रस्तुत ईएमडी (एक विदेशी बैंक द्वारा जारी) के एवज में दी गई बैंक गारंटी फर्जी थी.’ यह मामला सेकी की तरफ से आयोजित प्रतिस्पर्धी बोली के तहत 1,000 मेगावाट/ 2,000 मेगावाट घंटे की एकल आधार वाली बीईएसएस प्रोजेक्ट की स्थापना के लिए जारी किए गए चयन संदर्भ (RFS) से संबंधित है.
गड़बड़ी पाये जाने के बाद निविदा प्रक्रिया रद्द करनी पड़ी
उपरोक्त गड़बड़ी ई-रिवर्स नीलामी के बाद पाए जाने की वजह से सेकी को निविदा प्रक्रिया रद्द करने के लिए मजबूर होना पड़ा. सेकी ने कहा कि उसने रिलायंस पावर और रिलायंस एनयू बीईएसएस को तीन साल की अवधि में जारी होने वाली निविदाओं में हिस्सा लेने से रोक दिया है. निविदा शर्तों के अनुसार फर्जी दस्तावेज पेश करने की वजह से बोलीदाता को भविष्य की निविदाओं में शामिल होने से वंचित किया जा सकता है.
बोलीदाता इकाई ने रिलायंस पावर लिमिटेड की सब्सिडियरी कंपनी होने के कारण अपनी मूल कंपनी की ताकत का उपयोग करके वित्तीय पात्रता शर्तों को पूरा किया था. लेकिन इसके बाद हुई जांच में पाया गया कि बोलीदाता की तरफ से लिए गए सभी वाणिज्यिक और रणनीतिक फैसले वास्तव में मूल कंपनी द्वारा ही संचालित थे. ऐसे में रिलायंस पावर को भी भविष्य की निविदाओं में भाग लेने से रोकना जरूरी हो गया.
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